बाइबिल का परमेश्वर आप के जीवन की नाव की डूबने से बचा सकता हैं।
बाइबिल की कहानी उत्पति नमक पुस्तक से आरम्भ होती है जहाँ परमेश्वर ने दिन और रात, समुंद्र और धरती ,पेड पौधे, फल फूल, पशु पक्षी, छोटे जा बड़े जानवर आदि की रचना की ! जब वह यह सब बना चूका तो उसने मिटटी को लेकर आदमी को अपने रूप में बनाया, उसमे सांस फूंकी और उसे हर बनाई हुई रचना पर शासन करने का अधिकार दिया। उसने उससे यह कहा कि फलो फूलो और सफल हो। मनुष्य का व्यक्तित्व आत्मा, मन और शरीर का समन्वय था और उसे अपनी मर्ज़ी से परमेश्वर का अनुसरण करने और जानने की क्षमता थी। उसको अदन के खूबसूरत बाग़ में रहने की सुविधा दी गयी थी। परमेश्वर ने उसका अकेला होना उचित नहीं समझा और उसके दिल के पास की पसली लेकर औरत को बनाया। इस तरह का यह जोड़ा परमेश्वर को पसंद आया ।
उन दोनों को बाग़ की हर अच्छी चीज़ प्रदान की , परन्तु बाग़ के बीचो बीच अच्छे और बुरे के ज्ञान वाले वृक्ष्य के फल को खाने की मनाही की गई। सांप जो परमेश्वर की बनाई हुई रचनाओं में सबसे अधिक चालक प्राणी था शैतान के रूप में औरत के पास आया और उसे उस फल को खाने का प्रलोभन दिया। औरत ने जानते हुए की परमेश्वर ने यह मना किया है परमेश्वर की आज्ञा की अवहेलना की और ना ही स्वयं उस फल को खाया वरन अपने पति को भी दिया। इसका नतीजा भयानक था, दोनों अपने आप को नंगा और दोषी महसूस करने लगे । परमेश्वर को जब पता लगा तो उनको और सांप को दंड की आज्ञा दी। आदमी को सारी उम्र मिटटी से अन्न कमाने, मरने के बाद मिटटी में ही मिल जाने, औरत को प्रसव के समय पीड़ा और सांप को मनुष्य को पैर पर काटने और मनुष्य के इसके सर पर वार करने का शाप मिला। आदमी और औरत दोनों पाप के शाप के अन्दर आ गए और इसका नतीजा आज भी हम अपने व्यक्तिगत, समाज और देशो के जीवनो में देखते हैं ।
कहानी आगे बढ़ती हैं आदमी की संतान होती है उसका कुनबा बढ़ता है परन्तु पाप का प्रभाव हिंसा, बुराई, व्यभिचार तथा ईर्ष्या आदि को उत्पन्न करती हैं, इसका नतीजा युद्ध, अशांति, अकाल ,सुखा,बीमारी और कमी के रूप में नज़र आता हैं । बुराई इतनी बढ़ जाती हैं की परमेश्वर अपनी बनाई हुई सब रचना को नाश करने का फैंसला कर लेता हैं। परन्तु नूह नामक व्यक्ति जिसके परिवार में ८ सदस्य थे इस विनाश का शिकार नहीं होता क्योकि वह अपना जीवन परमेश्वर के नियमो के अनुसार बिताता हैं । उसको बचाने के लिए परमेश्वर उसे नाव बनाने की आज्ञा देता हैं और अपने परिवार के हर सदस्य, हर जानवर का एक जोड़ा तथा आवश्यकता की हर वस्तु लेकर नाव में घुसने को कहता हैं। जब नूह अपने सुरक्षा का पूरा प्रबंध परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार कर लेता हैं तो परमेश्वर जलप्रलय को आरम्भ कर देता हैं और ४० दिन तक पानी ही पानी ही पानी नज़र आता हैं। परन्तु नाव तैरने लगती हैं और सब के सब बच जाते है। परमेश्वर को फिर से दुःख होता है की उसने सब कुछ नाश कर दिया जिसको उसने स्वयं ही बनाया था। वह बाढ़ को रोक देता है और इंद्रधनुष को दिखा कर नूह से यह वाचा बांधता है कि वह किसी भी हालत में दुनिया का नाश नहीं करेगा। इस बात का अनुभव कि इंद्रधनुष नज़र आता हैं आज भी हम अधिक वर्षा के बाद देखते हैं। नूह की संतान होती है और पृथ्वी फिर से आबाद होनी शुरू हो जाती हैं परन्तु पाप का प्रभाव खत्म नहीं होता। मनुष्य परमेश्वर से स्वतत्र रहकर जीना चाहता है और उसकी आज्ञाओ की अवहेलना करता हैं। घमंड, हिंसा और अत्याचार मनुष्य को यह प्रेरणा देता है की वह एक ऊँचा बुर्ज बनाकर स्वर्ग को स्पर्श करे। परमेश्वर ऐसे करने वालो की भाषाओ को तीतर बितर कर देता हैं और विभिन भाषाओँ बोलने वाले समूहो और राष्ट्रों का जन्म होता हैं।
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